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विक्रमादित्य की गौरवशाली परम्पराओं को सीखकर आगे बढ़ें युवा : डॉ. राजपुरोहित

 

 

• डॉ वाकणकर की धरोहर को समर्पित दो दिवसीय समारोह का समापन

 

भोपाल। सम्राट विक्रमादित्य की गौरवशाली परंपरा है। उनकी शिक्षाओं और कथाओं को सदैव याद रखने की आवश्यकता है। युवाओं को इन ऐतिहासिक प्रसंगों से सीख लेकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।

राजधानी भोपाल के राज्य संग्रहालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने यह बात कहीं। वे यहां संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय मप्र द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बात कर रहे थे। इस अवसर पर प्रो. सीताराम दुबे ने डॉ. वाकणकर की अनुसंधान परंपरा और ऐतिहासिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार भीमबेटका जैसी खोजों ने न केवल मध्यप्रदेश की पुरातत्व दृष्टि को समृद्ध किया, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। गौरतलब है कि प्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर की जयंती के उपलक्ष्य में संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय के अंतर्गत डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर पुरातत्व शोध संस्थान ने यह दो दिवसीय आयोजन किया था। सचिव, मप्र शासन संस्कृति विभाग एवं आयुक्त, पुरातत्व के मार्गदर्शन में इस गरिमामयी आयोजन अत्यंत हर्षोल्लास और प्रेरणादायक व्याख्यानों से भरपूर रहा।

 

हुआ पुस्तकों का विमोचन

डॉ. वाकणकर की जयंती को समर्पित इस अवसर पर तीन महत्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। पहली पुस्तक वाकणकर संस्थान द्वारा वर्ष 2023-24 में किए गए कार्यों पर आधारित थी। दूसरी पुस्तक डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित को समर्पित थी और तीसरी पुस्तक प्रसिद्ध भीमबेटका शैलाश्रयों पर केंद्रित थी। इन पुस्तकों का विमोचन संयुक्त संचालक व निदेशक, डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर पुरातत्व शोध संस्थान डॉ. मनीषा शर्मा एवं आमंत्रित अतिथियों ने किया।

 

कला का मिला ईनाम

कार्यक्रम का समापन पुरस्कार वितरण के साथ हुआ। जिसमें चित्रकला और निबंध लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। चित्रकला प्रतियोगिता में अद्वित ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। निबंध प्रतियोगिता में साहिल भड़के विजेता रहे। आयोजन में भोपाल के विभिन्न विद्यालयों और महाविद्यालयों के विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ध्रुवेंद्र जोधा ने किया।

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